पहाड़ के हक-हकूकों पर डाका

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-बीना उपाध्याय

उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद यहां के जल, जंगल, जमीनों से लोगों के हक-हकूकों को छीना जा रहा है। पहले गांव वाले जंगलों की रखवाली करते थे वहां से पशुओं के लिए चारा, जलाने के लिए लकड़ी आदि लाते थे लेकिन धीरे-धीरे गांवों वालों के हक-हकूकों को छीन लिया गया, अब हद तो तब हो गयी जब चमोली जनपद के हेलँग में अपने पशुओं के लिए घास-चारा ला रही महिलाओं से उनका घास छीन कर सीआईएसएफ ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया जिसका पूरे उत्तराखण्ड में विरोध प्रदर्शन हो रहा है। महिलायें उत्तराखण्ड राज्य की रीढ़ हैं, पहाड़ का सम्मान हैं, इस तरह से महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करना क्या उचित है? पहाड़ी महिलाओं के बलबूते पर ही उत्तराखण्ड राज्य प्राप्त हुआ है, पशुपालन, खेती उनकी आजीविका का साधन हैं, चारापत्ती घास लेने के लिए वे वन-भूमि पर ही निर्भर हैं,लेकिन केंद्रीय रिजर्व पुलिस द्वारा जो दुर्व्यवहार किया गया वह अक्षम्मीय है यदि यह घटना सत्य है तो सरकार को संज्ञान लेते हुए दोषियों के विरूद्ध कार्यवाही करनी चाहिए। पहाड़ाें से वैसे भी पलायन हो रहे हैं चमोली जिले में फिर भी पलायन इतना नहीं हुआ है लेकिन यदि पहाड के लोगों के हक-हकूकों को ऐसे ही छीना जाता रहेगा तो लोग अपनी अजीविका कैेसे चलायेंगे। एक तरफ सरकार घसियारी योजना चला रही है ऐेसे में कैसे घसियारी योजना परवान चढ़ेगी यह सोचनीय विषय है। पहाड़ के लोग अपने ही पहाड़ों में बेगाने से हो गये हैं, जिन जंगलों, पहाड़ों को वे अपना मानते थे आज वे भू-माफिया, जल विद्युत कंपनियों की भेंट चढ़ते जा रहे हैं, ये कैसा विकास जहां वहीं के रह-वशिंदों को अपने हकों के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है यह तो सीधे पहाड़ के हक-हकूकों पर डाका है।

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